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चुप्पे चोरी बदरा के पार से / प्रकाश उदय
Kavita Kosh से
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उड़े खाती चिरईं के पाँख
बुड़े खाती मछरी के नाक लेब
उड़े-बुड़े कुछुओ के पहिले।
चुप्पे-चोरी चारो ओरी ताक लेब
चुप्पे चोरी बदरा के पार से
सँउसे चनरमा उतार के
माई तोर लट सझुराइब
चुप्पे चोरी लिलरा में साट देब।
भरी दुपहरी में छपाक से
पोखरा में सुतब सुतार से
माई जोही, जब ना भेंटाइब
रोई, ना सहाई जो त खाँस देब।
आजी बाती सुरुज के जोती
सखी बाती पाकल पाकल जोन्ही
भइया खाती रामजी के बकरी -
चराइब, दू गो चुप्पे चोरी हाँक लेब।
बाबू चाचा मारे जइहें मछरी
हमरा के छोड़िहें जो घरहीं
जले-जले जाल में समाइब
मछरी भगाइब, खेल नास देब।
दीदी के देवरवा ह बहसी
कहला प मानी नाहीं बिहँसी
भउजी के भाई हवे सिधवा
बताइब, जो चिहाई त चिहाय देब।