भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नई बोली / बैर्तोल्त ब्रेष्त / उज्ज्वल भट्टाचार्य
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:18, 21 जून 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बैर्तोल्त ब्रेष्त |अनुवादक=उज्ज...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
पहले जब वे अपनी औरतों से प्याज़ की बात करते थे
ख़ाली दुकानों में सामान फिर नदारद थे
और उन्हें गहरी सांस, ग़ालियों, चुटकुलों का मतलब
समझ में आ जाता था
बदहाली में भी किसी तरह जीना था ।
अब
वे मालिक हैं और उनकी एक नई बोली है
जो सिर्फ़ वही समझते हैं, कैडरबड़बड़
धमकी और सीख देने के लहजे में इसे बोला जाता है
और दुकानें भर जाती हैं – प्याज़ के बिना ही ।
हाँ, कैडरबड़बड़ सुनने के बाद
जायका बिगड़ जाता है ।
जो इसे बोलता है
उसकी आवाज़ चली जाती है ।
1953
मूल जर्मन भाषा से अनुवाद : उज्ज्वल भट्टाचार्य