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बछड़ों का कूच / बैर्तोल्त ब्रेष्त / उज्ज्वल भट्टाचार्य

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ढोलक के बोल पर 
बछड़े हैं जाते 
ढोलक की खाल वे 
ख़ुद ही हैं जुटाते 

हाँके कसाई । आँखों को मींच 
बछड़े के क़दम बढ़े शान्त । 
जिन बछड़ों के ख़ून रहे धरती को सींच 
वे बनाते चले उसके संग पाँत ।

हाथ तने ऊपर हैं
देखे हर कोई 
उँगलियाँ हैं उन्होंने 
ख़ून ही से धोईं
 
हाँके कसाई । आँखों को मींच 
बछड़े के क़दम बढ़े शान्त । 
जिन बछड़ों के ख़ून रहे धरती को सींच 
वे बनाते चले उसके संग पाँत । 

ख़ून सने परचम पे 
मुड़ी है सलीब 
फन्दा ये कैसा है 
जाने क्या ग़रीब
 
हाँके कसाई । आँखों को मींच 
बछड़े के क़दम बढ़े शान्त । 
जिन बछड़ों के ख़ून रहे धरती को सींच 
वे बनाते चले उसके संग पाँत ।

रचनाकाल : 1934

मूल जर्मन भाषा से अनुवाद : उज्ज्वल भट्टाचार्य