भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हाइकू - 4 / शोभना 'श्याम'

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:58, 26 जून 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शोभना 'श्याम' |अनुवादक= |संग्रह= }} Cat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

31
चंचल साँझ
गुदगुदा रही है
रात का गात

उदास रात
नहीं करेगी आज
किसी से बात

32
ओढ़ सन्नाटा
सो जाती है जल्दी
गाँव की रात

नाइट क्लब
देर तक थिरके
शहरी रात

33
सुबह शाम
जीवन गुलज़ार
कॉलोनी पार्क

करे विश्राम
सूनी दुपहरिया
कॉलोनी पार्क

34
गाँव का घर
दिन भर ताकता
सूनी डगर

रात को सोता
ओढ़ उम्मीद की
नयी चादर


35
धरा तपती
बादल के नाम की
माला जपती

जलते रस्ते
पल छिन वर्षा की
बात जोहते

36
स्वयं तो कूदा
समुद्र में सूरज
जला के धरा

चाँद ले आया
चांदनी मरहम
है चैन ज़रा

37
आखिरकार
पिघल है आसमाँ
सुन पुकार

धरा पी रही
भर भर अंजुरी
नभ का प्यार

38
जरा-सी नेकी
कमा के ले आएगी
बड़ी-सी दुआ

लाख बलाएँ
बचा के ले जायेगी
छोटी-सी दुआ

39
आँख मिचोली
उमंगें उम्र भर
मुझसे खेली

क्या कहे मन
कितनी गुरबतें
इसने झेलीं

40
राजा बसंत
हुक्म हरियाली का
दिग दिगंत

मीत मन का
जब भी आया, लगा
आया बसंत