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ख्वाब नहीं तो नींद दे / शोभना 'श्याम'

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ख्वाब नहीं तो नींद दे, नींद नहीं तो ख़्वाब दे
मेरे जीवन को भी मौला, कभी ज़रा-सी आब दे

अपनी क्षमता भर मैने तो, फूल प्यार के बांटे।
फिर क्यों मेरे हाथ में आये छलनाओं के कांटे।
मेरे हिस्से की ख़ुशबू का अब तो कोई हिसाब दे
मेरे जीवन को भी मौला

शास्त्र सभी तो कहते आये जीवन जीओ सच्चा।
बुरा करोगे बुरा मिलेगा भला करो तो अच्छा। ।
दुनिया में क्यों उल्टा होता इसका ज़रा जवाब दे
मेरे जीवन को भी मौला

लिख लिख के मेहनत की पोथी इन्सां थक-थक जाता है
रेला इक बिगड़ी क़िस्मत का पल में सब धो जाता है। ।
कुछ भी दे-दे न दे चाहे क़िस्मत नहीं खराब दे
मेरे जीवन में भी मौला

थोथी मुस्कानों के पीछे द्वेष छिपाये फिरते हैं
उतना ऊँचे उठते इंसा जितना नीचे गिरते हैं
मैं भी अपने दोष छिपा लूँ ऐसी कोई नकाब दें

तू क्या जाने मर-मर के भी जीना कैसा होता है।
घूंट घूंट विष तन्हाई का पीना कैसा होता हैं।।
ग़म का जिसमें हर्फ़ लिखा न ऐसी कोई किताब दे
मेरे जीवन में भी मौला

अपनी वफायें उनकी ज़फ़ाएँ याद कभी जब आएँ।
सौ सौ दंशों की पीड़ा-सी रग-रग में भर जाए। ।
होश तो खो दूँ बहकूँ भी न ऐसी कोई शराब दे
मेरे जीवन में भी मौला

उफ़क़ का सपना आँख में लेकर हम तो बढ़ते जायेंगे
कितनी भी तकलीफें दे दें हँस के सहते जायेंगे
न जाने कब किस नेकी का तू ही कोई सवाब दे
मेरे जावन में भी मौला कभी जरा-सी आब दे