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अपना कल हम आप सवारें / शोभना 'श्याम'
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अपना कल हम आप सवारें
क्यों हम अपने हाथ पसारें
किसके पीछे भाग रहे हैं
रुक के कुछ पल आज विचारें
धरती माँ है आस लगाए
आओ इसका क़र्ज़ उतारें
यादों की वीथी में भटके
दिल को सुबहोशाम पुकारें
नेह न रिश्तों से रिस जाए
मन की अपने पाट दरारें
कोई तो ख़्वाबों से कह दे
चादर जितने पाँव पसारें
पर उपदेश कुशल बहुतेरे
अपने को भी कभी सुधारें
खुदगर्ज़ी का आलम ऐसा
नेकी का सब दाम नकारें
कौन हरा सकता है किसको
मन के हारे ही सब हारें
चलन ये कैसा बेढब आया
धन के दर पर प्रेम को वारें
कौन खिलाये उस गुलशन को
रूठी जिससे रहें बहारें
श्याम बजा फिर बासुरी ऐसी
सुन के जिसको तन मन वारें