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तुम्हारा आना / शोभना 'श्याम'

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तुम्हारे आने से
भरा नहीं
खाली हो गया जितना तुम्हारे जाने से
मेरा घर,
ज़रा चेक कर लो
अपना सामान समेटते समय
कहीं गलती से
तुमने समेट तो नहीं ली
लापरवाही से घर में इधर उधर पड़ी
मेरी कुछ चीज़ें
जैसे तुम्हारे आने से पहले
वहाँ ताक पर रखी थी एक घड़ी इंतज़ार की
जिसकी टिक-टिक से
भरा भरा-सा लगता था मेरा दिन,
उधर दराज़ में रखी थी उम्मीद की एक टार्च
जिसकी रौशनी में घने अँधेरे के बीच भी
देख लिया करती थी
भावी मिलन की कुछ तस्वीरें
कुछ यक़ीन रखे थे
अवचेतन के रेफ्रिज्रटर में
जिनसे तर हो जाता था प्यास से सूखता गला
मेज़ पर रखी थी एक अतीत की डिब्बी
जिसमें से एक स्मृति उठा कर
अक्सर चबा लिया करती थी इलायची की तरह
यूं सुवासित हो जाते थे कुछ लम्हों के मुख
एक गुल्लक भी रखी थी शेल्फ पर
जिसमें डाल दिया करती थी
रोज़ के ख़र्च से बचे एक आध दर्द
गुल्लक को उठाते और रखते
जब खनखना उठते थे उसमें पड़े दर्द
तब संगीतमय हो जाते थे कुछ पल
एक प्रिज्म भी पड़ा रहता था यहाँ वहाँ
जब हाथ आ जाता था
तो दिखा देता था
वक्त की तीखी धूप में छिपे
खुशियों के कुछ रंग
बुरा न मानना अब इनमें से कुछ नहीं यहाँ
आखिर
तुम्हारा आना क्यों न हो पाया वैसा
जैसा होना था तुम्हारा आना