मैं / कौशल किशोर
जी हाँ, मैं भूख नहीं
भूख का इलाज़ हूँ
मैं बीमारी नहीं
बीमार का डाक्टर हूँ
मैं विकट परिस्थितियों से हार कर
भाग कर
आत्महत्या का निष्कर्ष नहीं हूँ
जो लोग
पूरी दुनिया में
भूख, बीमारी
और आत्महत्या का सौदा करते हैं
उन्ही के खिलाफ एक आवाज़ हूँ मैं
इन्कलाब हूँ मैं
मैं पैदा होता हूँ
झोपड़ियों में
मैं पलता हूँ
गांव-गांव
शहर-शहर
नगर-नगर
डगर-डगर
मैं जीता हूँ
खेतों-खलिहानों में
खानों-खदानों में
मिलों-कारखानों में
मैं लड़ता हूँ
अपनी रोज़ी के लिए
अपनी रोटी के लिए
अपने अधिकारों के लिए
अपनी बेदखल हुई जमीनों के लिए
मैं युद्ध करता हूँ
हरवा-हथियारों से
हसिया-हथौड़ों से
खुरपी-कुदालों से
लाठी-भालों से
मैलट-हैमरों से
मैं जंग करता हूँ
खून पीते जोकों के खिलाफ
आदमखोरों के खिलाफ
सूदखोरों-महाजनों के खिलाफ
जमीन्दारों-जोतेदारों के खिलाफ
सामन्तों-रजवाड़ों के खिलाफ
मैं पैदा होता रहूंगा
मैं पलता रहूंगा
मैं जीता रहूंगा
मैं युद्ध करता रहूंगा
मैं जंग लड़ता रहूंगा
जारी है, जारी रहेगी यह जंग
रात के खिलाफ नई सुबह होने तक।