बस्ती कोई घटना नहीं है / कौशल किशोर
बस्ती तब भी थी
वह अब भी है
अनेक में एक
और एक में अनेक
उसका नाम कुछ भी हो सकता है
बेलछी, चवरी, परसबीघा, पिपरा, मुसहरी
कोई भी नाम रखा जा सकता है
उसके सिवान पर
अपने को ज़मीन में धंसाती
एक औरत बैठी है
वह न किसी की बहू है
न बेटी है
तुम्हारी नज़र में वह सीता देवी है
अयोध्या कि रानी लखन लाल की भौजी है
राजा राम की पत्नी है
लेकिन असल में रमुआ मांझी की घरैती है
मैं कहता हूँ-मत जाओ उसके पास
मैं कहता हूँ-मत छेड़ो उसे
मैं कहता हूँ-मत करो साक्षात्कार
वह तुमसे सवाल करेगी
भून दिए गए पति देवर भाई-बन्दे मांगेगी
अपने बच्चे मांगेगी
जला दी गई झुग्गी-झोपड़ी मांगेगी
पूरा टोला-टोली मांगेगी
कच्छ से कोहिमा तक
कश्मीर से कन्या कुमारी तक
फैले इस कृषि प्रधान देश की
अभिजात्य आंखों में
बस्ती कोई घटना नहीं है
आंखें मूंद लो
चादर तान सो जाओ
बस्ती कोई घटना नहीं है।