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पहलै पहरै रैंणि / रैदास

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।। राग जंगली गौड़ी।।
  
पहलै पहरै रैंणि दै बणजारिया, तै जनम लीया संसार वै।।
सेवा चुका रांम की बणजारिया, तेरी बालक बुधि गँवार वे।।
बालक बुधि गँवार न चेत्या, भुला माया जालु वे।।
कहा होइ पीछैं पछतायैं, जल पहली न बँधीं पाल वे।।
बीस बरस का भया अयांनां, थंभि न सक्या भार वे।।
जन रैदास कहै बनिजारा, तैं जनम लया संसार वै।।१।।
  
  
  
दूजै पहरै रैंणि दै बनजारिया, तूँ निरखत चल्या छांवं वे।।
हरि न दामोदर ध्याइया बनजारिया, तैं लेइ न सक्या नांव वे।।
नांउं न लीया औगुन कीया, इस जोबन दै तांण वे।।
अपणीं पराई गिणीं न काई, मंदे कंम कमांण वे।।
साहिब लेखा लेसी तूँ भरि देसी, भीड़ पड़ै तुझ तांव वे।।
जन रैदास कहै बनजारा, तू निरखत चल्या छांव वे।।२।।
  
  
  
तीजै पहरै रैणिं दै बनजारिया, तेरे ढिलढ़े पड़े परांण वे।।
काया रवंनीं क्या करै बनजारिया, घट भीतरि बसै कुजांण वे।।
इक बसै कुजांण काया गढ़ भीतरि, अहलां जनम गवाया वे।।
अब की बेर न सुकृत कीता, बहुरि न न यहु गढ़ पाया वे।।
कंपी देह काया गढ़ खीनां, फिरि लगा पछितांणवे।।
जन रैदास कहै बनिजारा, तेरे ढिलड़े पड़े परांण वे।।३।।
  
  
  
चौथे पहरै रैंणि दै बनजारिया, तेरी कंपण लगी देह वे।।
साहिब लेखा मंगिया बनजारिया, तू छडि पुरांणां थेह वे।।
छड़ि पुरांणं ज्यंद अयांणां, बालदि हाकि सबेरिया।।
जम के आये बंधि चलाये, बारी पुगी तेरिया।।
पंथि चलै अकेला होइ दुहेला, किस कूँ देइ सनेहं वे।।
जन रैदास कहै बनिजारा, तेरी कंपण लगी देह वे।।४।।