मन पर अधिकार तुम्हारा है / कमलेश द्विवेदी
यह तुमने भी स्वीकार किया यह हमने भी स्वीकारा है।
तन पर अधिकार किसी का है मन पर अधिकार तुम्हारा है।
तन और कहीं पर रहता है
मन का घर और कहीं पर है।
मैं अपना पता बताऊँ क्या
मेरी ख़ातिर यह दुष्कर है।
तन में घर-बार किसी का है मन में घर-बार तुम्हारा है।
तन पर अधिकार किसी का है मन पर अधिकार तुम्हारा है।
मैं तो नज़दीक किसी के हूँ
तुमसे तो काफ़ी दूरी है।
पर इसे समझते हो तुम भी
यह दुनियावी मजबूरी है।
तन से सत्कार किसी का है मन से सत्कार तुम्हारा है।
तन पर अधिकार किसी का है मन पर अधिकार तुम्हारा है।
रातें हैं और किसी की पर
ख़्वाबों में तुम ही रहते हो।
मन वह ही कहता-सुनता है
जो कुछ तुम सुनते-कहते हो।
तन का संसार किसी का है मन का संसार तुम्हारा है।
तन पर अधिकार किसी का है मन पर अधिकार तुम्हारा है।