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मुझको मेरा गीत मिल गया / कमलेश द्विवेदी
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मुझको मेरा गीत मिल गया आज राह में बाँह पसारे।
बोला-मुझको भूल गए क्या कितने दिन हो गए निहारे।
मैंने कहा-नहीं रे पगले
तुझको कभी भुला सकता हूँ?
जिस दिन तुझको भूल गया मैं
उस दिन क्या मैं गा सकता हूँ?
तेरी याद सदा रहती है मेरे दिल में साँझ-सकारे।
मुझको मेरा गीत मिल गया आज राह में बाँह पसारे।
बोला गीत-चलो फिर आओ
इक-दूजे को गले लगा लें।
हम-तुम मिलकर इस दुनिया में
एक नई रचना रच डालें।
लोगों के दिल को छू जायें भाव हमारे-शब्द तुम्हारे।
मुझको मेरा गीत मिल गया आज राह में बाँह पसारे।
इतना कहकर गीत-मीत ने।
मेरे गले डाल दी बाँहें।
ऐसे समा गया वह मुझमें-
सबको एक नज़र हम आयें।
"गीतकार" के सम्बोधन से हर कोई अब मुझे पुकारे।
मुझको मेरा गीत मिल गया आज राह में बाँह पसारे।