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कितनी प्रीत हमारी गहरी / कमलेश द्विवेदी

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मन को झंकृत करे तुम्हारी प्यार भरी स्वर-लहरी।
अब तुम ही अनुमानो कितनी प्रीत हमारी गहरी।

तुमने मुझे "बसंत" कहा तो
खिली ह्रदय की कलियाँ।
मधुर कल्पना कि आ बैठीं
उन पर ढेर तितलियाँ।
रंग-बिरंगी दिखें पन्नियाँ ज्यों उत्सव में फहरी।
अब तुम ही अनुमानो कितनी प्रीत हमारी गहरी।

तुमने मुझको "सिंधु" कहा तो
उठीं ह्रदय में लहरें।
प्यार भरी लहरें सागर के
मन में कब तक ठहरें।
आओ नदिया-सी मिल जाओ दिन हो या दोपहरी।
अब तुम ही अनुमानो कितनी प्रीत हमारी गहरी।

जो भी तुम कहती हो उसमें
प्यार छिपा होता है।
प्यार छिपा होता है मन का
सार छिपा होता है।
प्रीत किसी के मन में छिपकर कितने दिन तक ठहरी।
अब तुम ही अनुमानो कितनी प्रीत हमारी गहरी।