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काबिज़ याद तुम्हारी है / कमलेश द्विवेदी
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लाख भुलाना चाहूँ तुमको पर मेरी लाचारी है।
मेरे दिल की हर धड़कन पर काबिज़ याद तुम्हारी है।
जाने कैसे लोग किसी के
बिना ज़िया करते हैं।
जाने कैसे लोग किसी को
भुला दिया करते हैं।
तुम्हें भुलाकर जीना मेरी ख़ातिर तो दुश्वारी है।
मेरे दिल की हर धड़कन पर काबिज़ याद तुम्हारी है।
तुम्हें भुलाने का प्रयास तो
कितनी बार किया है।
लेकिन मैंने हर प्रयास, अब
तक बेकार किया है।
बार-बार अपने ही दिल से खाई मात करारी है।
मेरे दिल की हर धड़कन पर काबिज़ याद तुम्हारी है।
माना समय गुज़र जायेगा
आहिस्ता-आहिस्ता।
पर क्या कभी ख़त्म हो सकता
दिल-धड़कन का रिश्ता।
जब तक यह रिश्ता है क़ायम, अपनी रिश्तेदारी है।
मेरे दिल की हर धड़कन पर काबिज़ याद तुम्हारी है।