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लाजवाब लिख दूँ मैं / कमलेश द्विवेदी

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मेरी ख़ातिर बना हक़ीक़त, एक ख़्वाब लिख दूँ मैं।
लाजवाब है क्यों न तुझे फिर लाजवाब लिख दूँ मैं।

यों गुलाब तेरे अधरों से
मिलता-जुलता लगता।
पर अधरों की तुलना में वो
फीका-फीका लगता।
फिर तेरे अधरों को कैसे क्यों गुलाब लिख दूँ मैं।
लाजवाब है क्यों न तुझे फिर लाजवाब लिख दूँ मैं।

लोग बताते हैं-शराब में
होता बहुत नशा है।
पर तेरी आँखों से ज़्यादा
उसमें नशा कहाँ है।
फिर तेरी आँखों को कैसे क्यों शराब लिख दूँ मैं।
लाजवाब है क्यों न तुझे फिर लाजवाब लिख दूँ मैं।

कवि सुन्दर चेहरे की तुलना
चंदा से ही करता।
पर चंदा से बढक़र तेरे
चेहरे की सुंदरता।
फिर तेरे चेहरे को कैसे माहताब लिख दूँ मैं।
लाजवाब है क्यों न तुझे फिर लाजवाब लिख दूँ मैं।