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दो बातें करने को तुमसे / कमलेश द्विवेदी

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दो बातें करने को तुमसे अक्सर ही अकुलाता हूँ मैं।
और कभी जब बात न होती परेशान हो जाता हूँ मैं।

मिस्ड कॉल कर तुम्हें सोचता
अब आयेगा फ़ोन तुम्हारा।
फिर भी कॉल न आती है तो
मिस्ड कॉल करता दोबारा।
इतने पर भी मिले न उत्तर तो फिर फ़ोन लगाता हूँ मैं।
दो बातें करने को तुमसे अक्सर ही अकुलाता हूँ मैं।

लेकिन कभी-कभी यह स्थिति
मन की पीड़ा और बढ़ाये।
बार-बार घंटी तो जाये
मगर न कोई फ़ोन उठाये।
कैसे तुम्हें बताऊँ तुम पर तब कितना झुँझलाता हूँ मैं।
दो बातें करने को तुमसे अक्सर ही अकुलाता हूँ मैं।

लाख घना हो ग़म का कुहरा
पल में बिलकुल छँट जाता है।
दो बातें कर लेता तुमसे
तो पूरा दिन कट जाता है।
तुम क्या जानो तुमसे बातें करके क्या सुख पाता हूँ मैं।
दो बातें करने को तुमसे अक्सर ही अकुलाता हूँ मैं।