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मैंने दिल की बात कही / कमलेश द्विवेदी

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पहली बार आज प्रिय तुमसे मैंने दिल की बात कही।
अब यह तुम ही जानो मैंने ग़लत कहा या कहा सही।

मेरे दिल में जो भी आया
मैंने तुमसे वही कहा।
इस बारे में सही-ग़लत का
कोई निर्णय नहीं रहा।
पर दिल की बातें कहते ही पीड़ा कि दीवार ढही।
पहली बार आज प्रिय तुमसे मैंने दिल की बात कही।

जब भी दिल का दामन थामा
तो दिमाग़ का छूट गया।
जब दिमाग़ से काम लिया तो
दिल बेचारा टूट गया।
दिल-दिमाग के बीच कहीं क्या रिश्तेदारी कभी रही।
पहली बार आज प्रिय तुमसे मैंने दिल की बात कही।

दिलवाले कविताओं में भी
दिल की बातें लिखते हैं।
जैसे भीतर होते हैं वे
वैसे बाहर दिखते हैं।
जो भी दिल से लिख देते हैं हो जाता है सत्य वही।
पहली बार आज प्रिय तुमसे मैंने दिल की बात कही।