भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्रकाश तू ही फैलाती है / कमलेश द्विवेदी

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:12, 1 जुलाई 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कमलेश द्विवेदी |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैं माटी का दिया और तू मेरी बाती है।
मेरे जीवन में प्रकाश तू ही फैलाती है।

मैं हूँ तुझमें तू है मुझमें
ऐसा बंधन है।
तेरे कारण ही मेरा यह
जीवन पावन है।
मैं चन्दन हूँ लेकिन मुझको तू महकाती है।
मेरे जीवन में प्रकाश तू ही फैलाती है।
अपने बंधन बँधे यहाँ से
नहीं, वहाँ से हैं।
तन है मेरा लेकिन इसमें
तेरी साँसें हैं।
मेरे गीत रागिनी बनकर तू ही गाती है।
मेरे जीवन में प्रकाश तू ही फैलाती है।

जनम-जनम से तेरी-मेरी
रिश्तेदारी है।
मैं जानूँ तू जाने इसको
दुनिया सारी है।
पर इस रिश्ते को तू मुझसे अधिक निभाती है।
मेरे जीवन में प्रकाश तू ही फैलाती है।