भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

इंतज़ार की हद होती है / कमलेश द्विवेदी

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:36, 1 जुलाई 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कमलेश द्विवेदी |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कब तक उसकी राह निहारें इंतज़ार की हद होती है।
बार-बार आने को कहता "बार-बार" की हद होती है।

कल का वादा करते-करते
जाने कितने दिन बीते हैं।
उसका रस्ता देख-देख कर
नयन आँसुओं से रीते हैं।
मगर नहीं वह अब तक आया ऐतबार की हद होती है।
कब तक उसकी राह निहारें इंतज़ार की हद होती है।

माना अब तक सुख देती हैं
पहली मुलाक़ात की यादें।
पर बस इतनी यादों के सँग
कैसे सारी उम्र बिता दें।
कभी किसी के मिलने में क्या एक बार की हद होती है।
कब तक उसकी राह निहारें इंतज़ार की हद होती है।

नहीं समझ में आया जब यह-
हम क्या सोचें और विचारें।
हमने अपने दिल से पूछा-
कब तक उसकी राह निहारें?
दिल बोला-ताउम्र निहारो, कहीं प्यार की हद होती है।
कब तक उसकी राह निहारें इंतज़ार की हद होती है।