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वैसे ही दिन फिर आयेंगे / कमलेश द्विवेदी

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फिर वैसे दिन कब आयेंगे, फिर वैसे दिन कब आयेंगे।
जब हम फुरसत से बैठेंगे, घंटों-घंटों बतियायेंगे।

जब बातों में दिन गुज़रेगे
और रात भी ढल जायेगी।
जब हम दोनों की बातें सुन
बगिया में कोयल गायेगी।
जब हम ऐसे गीत रचेंगे, जो सबके मन को भायेंगे।
फिर वैसे दिन कब आयेंगे, फिर वैसे दिन कब आयेंगे।

जब भी तुम कुछ नया करोगे
पहले हमको दिखलाओगे।
और हमारी तारीफ़ों से
सबसे अधिक ख़ुशी पाओगे।
जब ख़ुशियाँ ग़ज़लों में लिखकर, तुम गाओगे हम गायेंगे।
फिर वैसे दिन कब आयेंगे, फिर वैसे दिन कब आयेंगे।

उम्मीदों की ख़ुशबू हो तो
फूल किसी दिन खिल जाता है।
सच्चे दिल से माँगो कुछ भी
तो फिर सब कुछ मिल जाता है।
हम भी अपनी चाहत के पल आज नहीं तो कल पायेंगे।
दिल कहता है-वैसे ही दिन फिर आयेंगे-फिर आयेंगे।