भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
भाई रे सहज बन्दी लोई / रैदास
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:27, 17 सितम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रैदास }} <poem>।। राग आसा।। भाई रे सहज बन्दी लोई, बि...)
।। राग आसा।।
भाई रे सहज बन्दी लोई, बिन सहज सिद्धि न होई।
लौ लीन मन जो जानिये, तब कीट भंृगी होई।। टेक।
आपा पर चीन्हे नहीं रे, और को उपदेस।
कहाँ ते तुम आयो रे भाई, जाहुगे किस देस।।१।।
कहिये तो कहिये काहि कहिये, कहाँ कौन पतियाइ।
रैदास दास अजान है करि, रह्यो सहज समाइ।।२।।