भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
समय गुजरना है बहुत / विजयशंकर चतुर्वेदी
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:55, 9 जुलाई 2020 का अवतरण
बहुत गुजरना है समय
दसों दिशाओं को रहना है अभी यथावत
खनिज और तेल भरी धरती
घूमती रहनी है बहुत दिनों तक
वनस्पतियों में बची रहनी हैं औषधियाँ
चिरई-चुनगुन लौटते रहने हैं घोंसलों में हर शाम
परियाँ आती रहनी हैं हमारे सपनों में बेखौफ
बहुत हुआ तो किस्से-कहानियों में घुसे रहेंगे सम्राट
पर उनका रक्तपात रहना है सनद
और वक्त पर हमारे काम आना है
बहुत गुजरना है समय।