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चौरास्ते की ज़िन्दगी / जानकीवल्लभ शास्त्री
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मैली-मैली चान्दनी, चन्दा मुखड़ा फीका,
ऐसा काग़ज़ फैला जैसे हो कलंक-टीका।
आंसुओं टँके सपने तोरण उजड़े नीड़ के,
झेल अकेलापन मन ठिठका सम्मुख भीड़ के,
छुट्टे हाथ, कहाँ पर, इससे - छुटकारा जी का,
दिल पर पड़ती चोट ठनकता माथा मिट्टी का।
मैली-मैली चान्दनी, चन्दा मुखड़ा फीका,
ऐसा काग़ज़ फैला जैसे हो कलंक-टीका।
चौरस्ते की ज़िन्दगी कुछ धूल-पसीने की,
साधों की सुध सांसों में जकड़न-सी सीने की,
फूल भटकटैया का, पात कँटीली डाली का,
ज्यों मसान में मगन, नहीं हमसाया माली का।
मैली-मैली चान्दनी, चन्दा मुखड़ा फीका,
ऐसा काग़ज़ फैला जैसे हो कलंक-टीका।
	
	