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अबिगत नाथ निरंजन देवा / रैदास
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अबिगत नाथ निरंजन देवा।
मैं का जांनूं तुम्हारी सेवा।। टेक।।
बांधू न बंधन छांऊँ न छाया, तुमहीं सेऊँ निरंजन राया।।१।।
चरन पताल सीस असमांना, सो ठाकुर कैसैं संपटि समांना।।२।।
सिव सनिकादिक अंत न पाया, खोजत ब्रह्मा जनम गवाया।।३।।
तोडूँ न पाती पूजौं न देवा, सहज समाधि करौं हरि सेवा।।४।।
नख प्रसेद जाकै सुरसुरी धारा, रोमावली अठारह भारा।।५।।
चारि बेद जाकै सुमृत सासा, भगति हेत गावै रैदासा।।६।।