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चलो यार अब घर / कैलाश झा ‘किंकर’
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चलो यार अब घर।
हुआ मोम पत्थर॥
समझना है अब क्या
तुम्हीं मेरे रहबर।
नदी आई मिलने
पुलकता समंदर।
ग़ज़ल के लिए वह
भटकता है दर-दर।
सदा साथ रहना
जो निकलूँ सफ़र पर।
चराग़े-मुहब्बत
तो जलता कुहरकर।
हरिक शै को रखना
हमेशा नज़र पर।
ग़ज़ल की ये महफ़िल
सृजन से सृजनतर।