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शब्द / रसूल हम्ज़ातव / सुरेश सलिल
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टोह में नहीं रहता मैं किसी शब्द की
कि वह आए और लिख लिख जाए
मर्ज़ी जब होगी तब आएगा
कोई भी रोक नहीं पाएगा
अदबदा कर आंसू ज्यूँ आँख से छलक आए ।
यक्-ब-यक् आ उतरेगा वर्क़े पर
जैसे अगले ज़माने का कोई दोस्त
बिना इत्तिला के आ खड़ा हो दर पर
अँग्रेज़ी से अनुवाद : सुरेश सलिल