भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

यह महाजाल है / कैलाश झा 'किंकर'

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:51, 17 जुलाई 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कैलाश झा 'किंकर' |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यह महाजाल है
माछ बेहाल है।

सामन आ खड़ा
वक़्त विकराल है।

ज़िंदगी गाँव की
जैसे बदहाल है।

आपके बिन मेरा
प्रेम कंगाल है।

काल हैं आप तो
वह महाकाल है।

कैसे आऊँ वहाँ
साथ जंजाल है।

भारती के लिए
लाल ही लाल है।

दुश्मनों की नहीं
चल रही चाल है।