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रोशनी के लिए दिया बनता / कैलाश झा 'किंकर'
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रोशनी के लिए दिया बनता।
मैं भी सबके लिए सगा बनता॥
मेरी चर्चा भी लोग करते नित
ग़म के मारों का साथिया बनता।
दोस्त दुश्मन की बात क्या कीजै
सबके ज़ख़्मों की मैं दवा बनता।
वो तो अपनों की फ़िक्र करते हैं
मैं तो गैरों का आसरा बनता।
सिर्फ अपनों का साथ देते वह
मैं तो गैरों का ही सखा बनता।
मैं भी ज़रदार की किताबों में
दान करने का फ़लसफ़ा बनता।