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वर्षा-रति / अरुण देव
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मेघ बरस रहा है
कोई भी जगह न छोड़ी उसने
न कँचुकी उतारी
न खोला नीवी बन्ध
वह हर उस जगह है
जहाँ पहुँच सकते हैं अधर ।