भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दर्दनाशक की मदद / अरुण देव
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:11, 18 जुलाई 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अरुण देव |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
यार, ये अच्छी बात है कि तुम्हें पता रहता है कि देह में दर्द कहाँ है
घुलकर हर लेते हो
समन्दर में लाल-पीली कश्ती राहत की
पर मन की पीड़ा का इलाज तुमसे नहीं होगा
कुण्ठा का भी कहीं कुछ होता उपचार
यह दूसरी अच्छी बात है
कि दूसरों की पीड़ा समझने के रास्ते तुम बन्द नहीं करते
नाख़ून का दर्द
पुतलियों को पता है
वे तब तक बेचैन रहती हैं
यह दुनिया क्या इस तरह नहीं हो सकती थी
चोट पर चुम्बन की तरह ?