भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जब आग लगे... / रामधारी सिंह "दिनकर"
Kavita Kosh से
कुमार मुकुल (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 09:21, 18 सितम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: सीखो नित नूतन ज्ञान,नई परिभाषाएं, जब आग लगे,गहरी समाधि में रम जाओ; ...)
सीखो नित नूतन ज्ञान,नई परिभाषाएं, जब आग लगे,गहरी समाधि में रम जाओ; या सिर के बल हो खडे परिक्रमा में घूमो। ढब और कौन हैं चतुर बुद्धि-बाजीगर के?
गांधी को उल्टा घिसो और जो धूल झरे, उसके प्रलेप से अपनी कुण्ठा के मुख पर, ऐसी नक्काशी गढो कि जो देखे, बोले, आखिर , बापू भी और बात क्या कहते थे?
डगमगा रहे हों पांव लोग जब हंसते हों, मत चिढो,ध्यान मत दो इन छोटी बातों पर कल्पना जगदगुरु की हो जिसके सिर पर, वह भला कहां तक ठोस कदम धर सकता है?
औ; गिर भी जो तुम गये किसी गहराई में, तब भी तो इतनी बात शेष रह जाएगी यह पतन नहीं, है एक देश पाताल गया, प्यासी धरती के लिए अमृतघट लाने को।