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ज़िन्दगी में रंग भर कर / कैलाश झा 'किंकर'
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ज़िन्दगी में रंग भर कर।
घूमते हम रोज़ घर-घर॥
आ रहे हैं पास तेरे
हम नहीं हैं कोई पत्थर।
हम ठहाकों में सदा ही
बोलते हर बात हँसकर।
प्रेम के धागों में निशिदिन
हम सदा रहते हैं बँधकर।
हम बुजुर्गों के लिए ही
सोचते रहते हैं अक्सर।
बेटियों हैं स्नेह पावन
हम लुटाते जान उन पर।