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मुहब्बत की बातें मयस्सर नहीं / कैलाश झा 'किंकर'

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मुहब्बत की बातें मयस्सर नहीं
तो आवास कहिए ये है घर नहीं।

सभी एक दूजे से जलते रहे
किसी को तरक्क़ी का अवसर नहीं।

बने इतने कानून सबके लिए
ख़ता करने वालों को ही डर नहीं।

अहंकार में चूर है शख्सियत
किसी के लिए दिल में आदर नहीं

सफर में बहुत लोग मिलते मगर
सभी को बनाते हैं रह-बर नहीं

सभी को पता है कि मंज़िल तलक
पहुँचते दिशाहीन होकर नहीं