भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हिममानव / आग़ा शाहिद अली / अशोक कुमार पाण्डेय

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:45, 21 जुलाई 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आग़ा शाहिद अली |अनुवादक=अशोक कुमा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेरा पुरखा, हिमालय की
बर्फ़ का बना इनसान
समरकन्द से आया था कश्मीर
व्हेल की हड्डियों का झोला लटकाए :
विरासत नदी की क़ब्रगाहों की ।
  
उसका अस्थिपिंजर
ग्लेशियरों से बना था, उसकी सांस आर्कटिक की थी
अपने आलिंगन मे जमा देता था वह स्त्रियों को
उसकी पत्नी गल गई पथरीले जल मे
बूढ़ी उम्र में एक स्पष्ट
वाष्पीकरण ।

यह विरासत
मेरी खाल के नीचे उसका अस्थिपिंजर
बेटे से पोतों तक जाता
पीढ़ियाँ हिममानव की मेरी पीठ पर
वे हर साल मेरी खिड़की खटखटाते हैं
उनकी आवाज़ें बर्फ़ मे ख़ामोश हो जाती हैं ।

ना, वे मुझे जाड़े से बाहर नहीं जाने देंगे
और मैंने वादा किया है ख़ुद से
कि अगर आख़िरी हिममानव भी हूँ मैं
तो भी उनके पिघलते कन्धों पर चढ़कर
जाऊँगा बसन्त तक।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : अशोक कुमार पाण्डेय