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मैं हूँ रेल / कमलेश द्विवेदी
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मैं हूँ रेल-मैं हूँ रेल।
खाती कोयला-बिजली-तेल।
दूर-दूर तक जाती हूँ।
मंजिल तक पहुँचाती हूँ।
मन बहलाती बच्चों का,
काम बड़ों के आती हूँ।
इसका उससे उसका इससे,
रोज कराती रहती मेल।
मैं हूँ रेल-मैं हूँ रेल।
जब दिखती है झंडी लाल।
रुक जाती है मेरी चाल।
दिखती झंडी हरी मुझे,
मैं चल देती हूँ तत्काल।
ऐसा ही अनुशासन रक्खो,
कभी नहीं तुम होगे फेल।
मैं हूँ रेल-मैं हूँ रेल।
छुक-छुक-छुक-छुक करती हूँ।
चौबीस घंटे चलती हूँ।
थोड़ा-थोड़ा रुकती पर,
कभी नहीं मैं थकती हूँ।
आगे बढ़ते रहने का यों,
मुझसे सीखो सुंदर खेल।
मैं हूँ रेल-मैं हूँ रेल।