भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जाड़े का मौसम / कमलेश द्विवेदी

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:56, 25 जुलाई 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कमलेश द्विवेदी |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

इतना अधिक अखरता है क्यों जाड़े का मौसम।

स्वेटर पर स्वेटर है फिर भी,
लगती है सर्दी।
सही न जाती है मौसम की,
यह गुंडागर्दी।
हमें सताया करता है क्यों जाड़े का मौसम।
इतना अधिक अखरता है क्यों जाड़े का मौसम।

खेल-कूद सब बंद, निकलना
घर से है दुष्कर।
अर्धवार्षिक इम्तिहान भी,
आ पहुँचे सिर पर।
बच्चों का सुख हरता है क्यों जाड़े का मौसम।
इतना अधिक अखरता है क्यों जाड़े का मौसम।

अच्छा लगता बहुत-रजाई,
में दुबके रहना।
गरम-गरम हो चाय-पकौड़ी,
तो फिर क्या कहना।
तेज़ धूप से डरता है क्यों जाड़े का मौसम।
इतना अधिक अखरता है क्यों जाड़े का मौसम।