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अब मौसम है छुट्टी का / कमलेश द्विवेदी
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आओ झूमें-नाचें-गायें अब मौसम है छुट्टी का।
चाहें जितनी मौज उड़ायें अब मौसम है छुट्टी का।
सुबह नहीं अब जल्दी उठना,
और न जाना है स्कूल।
डाँट-डपट सब टीचर जी की,
अब हम जायें बिलकुल भूल।
चाहें जैसे समय बितायें अब मौसम है छुट्टी का।
आओ झूमें-नाचें-गायें अब मौसम है छुट्टी का।
लूडो-कैरम-टेबल टेनिस,
खेलें चाहें जितने खेल।
कोई नहीं कहेगा हमसे-
नहीं पढोगे, होगे फेल।
चाहें जितनी धूम मचायें अब मौसम है छुट्टी का।
आओ झूमें-नाचें-गायें अब मौसम है छुट्टी का।
खूब मौज-मस्ती है करनी,
जब तक ख़त्म न होता जून।
अब चाहें हम शिमला जायें,
चाहें जायें देहरादून।
चाहें जहाँ घूमने जायें अब मौसम है छुट्टी का।
आओ झूमें-नाचें-गायें अब मौसम है छुट्टी का।