हम बच्चे मस्ताने / कमलेश द्विवेदी

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तरह-तरह के खेलों से अपनी पहचान पुरानी है।
हम बच्चे मस्ताने अपनी दुनिया भी मस्तानी है।

बड्डी-बड्डी-बड्डी-बड्डी,
कितना प्यारा खेल कबड्डी.
जो न छू सके अपना पाला,
उसको कहते लोग फिसड्डी.
कोई बनना नहीं फिसड्डी अपनी टीम जितानी है।
हम बच्चे मस्ताने अपनी दुनिया भी मस्तानी है।

अक्कड़-बक्कड़ बम्बे बोल,
अस्सी-नब्बे पूरे सौ।
सौ में लागा धागा,
चोर निकलकर भागा।
चलो पकड़ लें आज चोर को नानी याद दिलानी है।
हम बच्चे मस्ताने अपनी दुनिया भी मस्तानी है।

हरा समुन्दर गोपी चन्दर,
बोल मेरी मछली कित्ता पानी।
इत्ता पानी-उत्ता पानी,
गहराई तूने ही जानी।
कभी न प्यासी रहती होगी तू तो जल की रानी है।
हम बच्चे मस्ताने अपनी दुनिया भी मस्तानी है।

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