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उपेक्षित हो क्षिति से दिन रात / हरिवंशराय बच्चन

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उपेक्षित हो क्षिति के दिन रात
जिसे इसको करना था, प्‍यार,
कि जिसका होने से मृदु अंश
इसे था उसपर कुछ अधिकार,

अहर्निश मेरा यह आश्‍चर्य
कहाँ से पाकर बल विश्‍वास,
बबूला मिट्टी का लघुकाय
उठाए कंधे पर आकाश!