भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आस्था / हरिवंशराय बच्चन
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:00, 28 जुलाई 2020 का अवतरण
तुमने
प्रतिमा का सिर काट लिया,
पर लोगों ने उसे सिर झुकाना नहीं छोड़ा है।
तुमने मूर्ति को नहीं तोड़ा,
लोगों की आस्था को नहीं तोड़ा है।
और आस्था ने
बहुत बार
कटे सिर को कटे धर से जोड़ा है।