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दुख का कोना / भारत भारद्वाज
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हारकर दुख
इस बार
मन के उस छिपे कोने में जाकर
निढाल हो गया
बहुत हिलाने-डुलाने पर
दुख ने धीरे से कहा —
अभी मेरी ओर मत देखो
यह तो मेरा स्थाई कोना है
अभी यहीं रहने दो चुपचाप मुझे
एक रोज़ ख़ुद चला जाऊँगा
तब तक तुम भी
मुझे भुला चुके होगे
सबकुछ सम्भाल चुके होगे
कभी नहीं आऊँगा
फिर तुम्हें दुखाने