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दमुआं के बापू पाठशाला आये / भूपराम शर्मा भूप
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दमुआँ के बापू आज पाठशाला आये।
भरी समस्त देह खुजली से छूटे गन्दी बास
उकरू बैठ गए कुर्सी पर अध्यापक के पास
पिछौरा लटकाए।
उड़ा मक्खियाँ लट्ठ टेककर बोले लेकर साँस
भई न क्यों अब तक दमुआँ कौ एकौ पोथी पास॥
बीस दिन है आये।
कैसी करौ पढ़ाई मुंशी कैसी माँगों फीस
खतहू दमुआँ बाँचि न आबै गुजरी गए दिन बीस
नाम कौ लिखवाए।
ऐसो ढंग लगै तुमने है करी न कोसित नेक
अब इक पोथी खतम करौ तो देऊँ अठन्नी एक
और दुइ निसराये।
तीन बीड़ियाँ दे दमुआँ को बोले आगी लाउ
एक हमैं, इक मुंसी कौ दै अरु इक तू सुलगाउ
चिलम हम नाइ लाये।
हँसी आ गयी मुझको सारा क्रोध हो गया नष्ट
बोला और बैठने का अब आप न करिए कष्ट
चार बजने आये।