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मुक्तक / भूपराम शर्मा भूप

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अपनी तहज़ीब की अर्थी को सजाते क्यों हो।
अपनी तालीम को फैशन-सा बनाते क्यों को॥
मातृभाषा में भी जो ठीक से तुतला न सकें,
ऐसे बच्चों को तुम अंग्रेज़ी रटाते क्यों हो॥

एक ही फूल है फिर फूलों में अंतर क्यों है।
एक ही डाल है फिर झूलों में अंतर क्यों है॥
मुझको बतलादो ए, तालीम के ठेकेदारों,
गाँव के, शहर के स्कूलों में अंतर क्यों है॥

पहले हर शब्द के आशय को सँभाला जाए।
फिर उसे प्यार से हर कान में डाला जाए॥
जिसके अध्ययन की न जीवन से कोई संगति हो,
ऐसे हर पाठ को पुस्तक से निकाला जाए॥