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डरू संस्कृति / प्रभाकर माचवे

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जो कुछ करना, भाई ! वह सब करना, लेकिन डरते-डरते !
जीना हो तो डरते-डरते, मरना लेकिन डरते-डरते !

प्रेम करो तो चोरी-छुपके, देख-फेंक कर दाएँ-बाएँ,
स्त्री से रति भी डरते-डरते (कहीं न आबादी बढ़ जाए)
दफ़्तर में अफ़सर से डरते, साहस कहीं भी न दिखलाओ
गाड़ी में ड्राइवर से डरते, चिकनी-चुपड़ी गाते जाओ !
 
कहीं तुम्हारे मित्र उभरते, कहीं तुम्हारे पुत्र उभरते,
हों तो उनकी सभी उमंगों पर डालो तुम पानी ठण्डा
ध्यान रखो, मुर्ग़ी बन पाए कहीं न यह इच्छा का अण्डा !
कोई मिले अपरिचित चाहे, कर जोड़ो, जोड़ो दो बाँहें।
 
सभी धर्म हैं प्यारे रस्ते, नेता हैं साक्षात् फ़रिश्ते।
दीवारों पर टाँगो भैया, गान्धी, शिवजी और सुरैया,
एक साथ ही एक पाँत में, तस्वीरों को करो नमस्ते !
साँसें लो डॉक्टर से डर के, रोटी लो बेकर से डर के !