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दुनिया भर के अंधियारे को / अंकित काव्यांश
Kavita Kosh से
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दुनिया भर के अंधियारे को शब्द ज्योति से दूर भगाना
साथी मेरे अपने गीतों से जन जन का मन बहलाना।
गीत न लिखना केवल नदिया की बलखाती लहरों पर तुम
पल पल मिटते जाते तटबंधों की भी तुम गाथा लिखना।
हरियाती लहराती फसलों की केवल खुशबू मत लिखना
पगडंडी पर आस लिए बैठे किसान का माथा लिखना।
हार गया मैं जिन मोड़ों पर उन मोड़ों पर आना जाना।
साथी मेरे अपने गीतों से जन जन का मन बहलाना।
बहुत मिलेंगे यार तुम्हे दुनियादारी सिखलाने वाले
लेकिन आंसू देख किसी के अपनी भी आँखे नम करना।
इच्छित मंजिल पा लेने की ज़िद में ध्यान रहे यह प्यारे
भाग्य बड़ा होता जीवन में अनुचित पथ पर पाँव न धरना।
स्वाभिमान की क़ीमत पर जो मिले उसे फ़ौरन ठुकराना।