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पुनर्जन्म मांगे है / अंकित काव्यांश

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एक अरसे से कोई गीत दफ़न है मन में
सूनी गलियां दिखें तो पुनर्जन्म मांगे है।

लाख बहाने हैं मेरे पास उसे कहने को।
कई यादें हैं उसके पास मौन रहने को।
बहरी दुनिया में गूंजने के भला क्या माने!
जिनकी मुट्ठी में नमक है वो जलन क्या जानें।

बन्द आँखों में एक चाँद लिए सोऊँ तो
रात फिर रात भर दिनों का भरम जागे है।

मुझसे पहले भी कितने गीतऋषि रोये हैं।
सबने आधी उमर के मायने भिगोये हैं।
लौट आये उन्ही के गीत उनके कानों में।
ओढ़ा सन्यास है थक हार के वीरानों में।

भूल जाओ कभी वापस न आ सकूंगा मैं
अब तो हर छाँह मुझे बोधिवृक्ष लागे है।