भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चंदा मामा / सुरेश कुमार मिश्रा 'उरतृप्त'
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:24, 3 अगस्त 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुरेश कुमार मिश्रा 'उरतृप्त' |अनु...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
चंदा मामा बड़े सयाने
कहाँ चले तुम जाते हो
कहीं पेड़ पर किसी के छत पर
कभी गगन में रहते हो।
कभी छूटे कभी बड़े
अपना रूप बदलते हो
तुम्हें पकड़ने बच्चे दौड़े
लेकिन हाथ ना आते हो।
हमें बुला लो हम भी देखें
कितने हो छिपने में तेज
पकड़ नहीं पाओगे हमको
हम दौड़ेंगे तुम से तेज।
चंदा मामा बड़े सयाने
कहाँ चले तुम जाते हो
कहीं पेड़ पर किसी के छत पर
कभी गगन में रहते हो।