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फागक रंग / एस. मनोज
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आबू सभ मिलि खेलू फाग
रहै न मनमे कनिको दाग।
सलमा क' संग राधा खेलै
पीटर संग कन्हैया
फागक रंग चढ़ै सभ पर त'
नाचै ता ता थैया
मिलि-जुलि सभ रंग लगाबै
संग जोगीरा गाबै
ऊँच नीच क' भेदभाव क'
सभ मिलि दूर भगाबै
रंग अबीरक बरखा होय आ
सभ मिलि खूब नहाबै
प्रीतक रंग चढ़ै सभ पर त'
सबहक मन हरखाबै
अछि सनेश ई नबका युगकेँ
जीवन सफल बनाबी
बैरभाव सभ भूलि बिसरि क'
रंगक पर्व मनाबी।