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अपने-पराये / अजित कुमार

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बादल पराये हैं ।

इसीलिये शायद ये जन-मन को भाये हैं ।
पल भर रहेंगे ये,
दुख नहीं सहेंगे ये,
भार लिये धाराधर मुझ पर झुक आये हैं ।


अपने जो: देते सुख,
दूसरे भले दें दुख-
आँसू के कन मैंने इनसे ही पाये हैं ।


बादल पराये हैं ।


आसमान अपना है ।

जैसे मुझको वैसे इसको भी तपना है ।


भागे तो जाय कहाँ,
मुक्ति भला पाय कहाँ,
उसको तो इसी जगह मरना है, खपना है ।


और भी समानता
मैं हूँ पहचानता-
आसमान भी, मैं भी : सब कैसा सपना है ।


आसमान अपना है ।