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रहस्य / अजित कुमार
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मन की सौ परतों के भीतर
है एक रहस्य छिपा मुझमें
- वह किरनों-सा तीखा,पैना,
- वह हिरनों-सा चचल, आतुर,
- वह सपनों-सा मोहक, मादक,
- वह अपनों-सा अपना, प्रियतर
- मुझमें है एक रहस्य छिपा
- मन की सौ परतों के भीतर ।
- वह मुझे मूक कर देता है,
- वह मुझमें अनगिन स्वर भरता,
- निश्चल, निस्पन्द बनाता है,
- जीवन भर की जड़ता हरता,
- है मुझमें एक रहस्य छिपा
- मन के भीतर सौ परतों में ।
- कितना ही उसे दबाता हूँ
- वह उभरा-उघरा आता है,
- कितना ही उसे बताता हूँ
- वह व्यक्त नहीं हो पाता है,
- है छिपा हुआ मन के भीतर
- सौ परतों में कोई रहस्य ।
- फिर कभी-कभी ऐसा होता-
- मन है ? परतें हैं ? या रहस्य ?:
- यह जान नहीं मैं पाता हूं;
- पर मुझे ज्ञात इतना अवश्य-
- उसके ही कारण है मेरी
- अनुरक्ति जगत में, जीवन में ।
- है एक रहस्य छिपा मुझमें
- सौ परतों के भीतर मन में ।